कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी : आई आई टी प्रवेश परीक्षा ,सुपर थर्टी ,पटना और कोटा का अंतर .
राजस्थान का कोटा शहर ,डेढ़ दो दशकों से +2 के बाद कि मेडिकल और इंजीनियरिंग प्रवेश परीक्षा कि तैयारी का अहम् मुकाम बना हुआ है .पचासों हजार लडके लडकियां , हर साल ,यहाँ के नामी गिरामी कोचिंग संस्थायों में मेडिकल ,इंजीनियरिंग में दाखिला लेने के सुन्दर सपने संजोये आते हैं.बंसल क्लास्सेस और अल्लेन सरीखी संस्थायों में माध्यम वर्ग कि हैसियत से फाजिल शुल्क लगता है . कई अभिभावक पेट काट कर ऊँचे फीस वाले इन व्यवसायिक संस्थानों में अपने बच्चों को साल दर साल भेजते रहें हैं. हर साल प्रवेश परीक्षायों में अपेक्षित सफलता इन संस्थानों को मिलती रही है . पता नहीं समानुपातिक नजरिये से देखें तो सफलता का क्या प्रतिशत बैठेगा . पर ये कोचिंग संस्थान साल दर साल जरूर इतना कुछ कर लेते हैं कि इनके बाजार और ग्राहकों में उतरोत्तर वृद्धि होती रहती है.जानकार बताते हैं कि कोचिंग के इर्द गिर्द अरबों रुपये का व्यवसाय कोटा में संचालित हो रहा हैऔर फलस्वरूप स्थानीय अर्थव्यवस्था फल फूल रही है.
कोटा के इन व्यवासायिक कोचिंग संस्थानों कि तुलना अगर पटना के सुपर 30 ( फिलहाल श्री आनंद कुमार द्वारा प्रायोजित और पूर्व में अभयानंद जी द्वारा संयुक्त रूप से संचालित ) सुपर 50 ( अभ्यानान्दजी ) रहमानी थर्टी , अंग , मगध और नालंदा थर्टी जैसी संस्थायों से करें कुछ खास बातें सामने आती हैं.पटना और बिहार के इन संस्थानों में ये सारे प्रयास समाज के उन मेधावी छात्रों के लिए हैं जो वंचित तबके से आते हैं. छात्रों का चुनाव लिखित प्रवेश परीक्षा से ये संस्थान करते हैं.आनंद कुमार , अभयानंद तथा समाज सेवियों ( रहमानी फौन्डेशन आदि ) के द्वारा जुटायी गयी धन राशिः से इन बच्चों के रहने और खाने पीने कि निःशुल्क व्यवस्था होती है. प्रवेश परीक्षा कि तैयारी इनके मार्गनिर्देशन में होती है.इसके एवज में अभिभावकों से कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. यहाँ पर आठ दस महीनों में हीं इनकी मेधा का परिमार्जन कुछ इस तरह होता है कि सुपर थर्टी हर साल सफलता की नयी बुलंदी हासिल करता रहा है. इसके हमजोली अन्य सुपर ५० आदि पिछले साल शुरू किये गए और उन्हें भी इस वर्ष काबिले तारीफ़ सफलता मिली है.
समाज के बंचित तबकों कि मेधा को इस तरह कि पालिश , और वो भी निशुल्क ,देश में अन्यत्र उपलब्ध नहीं है . कोटा में भी नहीं , जहां कोचिंग का अरबों रुपये का व्यवसाय है.
पटना में भले हीं नए मठ , मंदिर , धर्मशाले न बने हों , पर आनंद कुमार का सुपर थर्टी , अभयानंद का सुपर फिफ्टी और रहमानी थर्टी आदि बेमिसाल संस्थाएं तो हैं.
वंचित तबकों कि निःशुल्क मेधा सृजन का ऐसा अनोखा पुनीत कार्य क्या बिहार में हीं संभव था ?
कहने का मन कर रहा है कि कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी .
श्री आनंद कुमार और अभ्यानान्दजी के जज्बे और दृढ निश्चय को सलाम .
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
5 weeks ago
6 comments:
बहुत अनुठा प्रयास.. बधाई...
एकदम सही कहा आपने, कोटा जाना हर किसी के बस की बात भी नहीं है… फ़िर वहाँ के संस्थान पहले से ही 90% से ऊपर के छात्रों को लेते हैं और फ़िर विज्ञापन ऐसा करते हैं मानो उन्होंने कोई कमाल कर दिखाया हो… अरे भाई, किसी 60-70% वाले छात्र को दो साल पढ़ाओ और उसका सिलेक्शन हो तब तो कोई चिल्लाने की बात है, जो बच्चे पहले से ही मेधावी हैं उन्हें सिलेक्शन करवाकर कौन सा तीर मार लिया? इसीलिये बिहार के सुपर-30 को हार्दिक प्रणाम करने को जी चाहता है… वैसे भी बिहारी लोग बेहद प्रतिभाशाली होते हैं…
अध्ययन का व्यवसाय बनाना तो कोई प्राइवेट स्कूल वालों और कोचिंग वालों से सीखें.
हमारे देश में अभी सारे सुपर ३०, और सुपर ५० की जरूरत है.
माँ बाप की आर्थिक क्षमता न होते हुए भी बच्चों को उन संस्थानों में भेजना कहीं न कहीं बच्चों पर उन उम्मीदों को लादना भी होता है, जिसके लिए कई तैयार नहीं होते और बच्चे माँ बाप से दूर हो जाते हैं, पर हम ऐसे ही सीखते हैं.
बिहार गरीब है, पर इसी गरीबी ने हमे बहुत कुछ दिया है. मसलन मेहनत की ताक़त, और अभावों में जीने की हिम्मत.
ऐसे सुपर ३० हरेक प्रदेश में चाहिये, जरुरत है तो बहुत सारे अभयानंदों की।
सब बातें सही हैं। पर कोटा के इस कोचिंग व्यवसाय ने ही कोटा की अर्थव्यवस्था को संभाल लिया वरना 1997 में एक साथ छह कारखानों की बंदी ने कोटा की कमर तोड़ दी थी।
कोटा को इस कोचिंग का यह अभिशाप भोगना पड़ा है कि यहाँ। दसवीं कक्षा के बाद कोई अच्छा विद्यालय उपलब्ध नहीं रहा। सब बच्चे कोचिंग जाते हैं, स्कूल सिर्फ उन की फर्जी हाजरी भरते हैं।
Vakai kuch baat to hai...
Aapke 'Magah Desh' blog par tippani post nahi ho pa rahi.
Kafi sarahniya pryas hai aapka. Badhai.
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