Tuesday, January 20, 2009

कैसा हो भारत का ओबामा ?

भारत और अमेरिका में बुनियादी फर्क है ,भला इससे कौन इनकार कर सकता है।
लेकिन कल्पना के आकुल उड़ान में किसी विघ्न की जगह कहाँ है?
और सोचने से परहेज क्यों ?
निसंदेह हमें भी एक ओबामा खोजना होगा।
बिल्कुल वैसा ही ,जो की भारतीय समाज के मार्जिन की उपज हो।
दलित,शोषित और उपेक्षित समुदाय का लाडला या लाडली।
सुदूर पूर्व उत्तर या सुदूर दक्षिण का ।
गंगा यमुना के मैदान का भी हो सकता है।
पर तथाकथित भारतीय समाज की मुख्यधारा का नहीं ।
लेकिन उसकी " उम्मीद की धृष्टता " की कोई सीमा न हो।
उसके सोच के दायरे में पूरा विश्व हो ।
"उदार चरिताम वसुधैव कुटुम्बकम " की उद्दात भावना से ओत प्रोत ।
भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत के स्वस्थ और प्रगतिशील धारा में रचा बसा ।
जिसे भारतीय होने का गर्व हो ।
जिसे अपने पुरखों के त्याग और शोषण के इतिहास की स्मृति तो हो पर उससे बंधा न हो ।
जो अपने आप को महज शिकार न समझे।
बल्कि सारे लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण हो ।
सबका प्रतिनिधित्व करने का माद्दा हो जिसमें ।
सारांश में विकल्प हो वर्तमान का ,इसका सब्स्तिचुत नहीं ।
क्या हम सब ओबामा के भारतीय रूप और संस्करण के लिए तैयार हैं ?

भारत में बराक ओबामा - कब और कैसा ?

आज जब बराक ओबामा अमेरिका के ४४ वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ग्रहण करेंगें तो हम लोग इतिहास बनते देखेंगें ।
यह एक युगांतकारी घटना है न सिर्फ़ अमेरिका के लिए बल्कि दुनिया भर में एक जीवंत उदहारण और मिशाल के रूप में।बराक ओबामा के लिए यह व्यक्ति गत स्तर पर अद्भुत उपलब्धि है .पर यह अमेरिकी समाज और वहाँ कि राजनीति के अद्भुत स्वरुप , परिपक्वता और लोकतान्त्रिक मूल्यों के प्रति समर्पण को भी रेखांकित करता है. शायद इसे ही "अमेरिकन स्वप्न " कहा गया है.
क्या हम भारतीय ओबामा की कल्पना कर सकते हैं?
हिन्दुस्तानी ओबामा की क्या पहचान होगी ?
उसका धर्म क्या होगा?
अगर हिंदू हुआ तो उसकी जाति क्या होगी ?
पुरूष या औरत ?
सुदूर पूर्व या सुदूर दक्षिण ?
मदरसे का पढ़ा होगा या किसी बंधुआ मजदूर की संतति होगा ?
कितनी दूर है भारत का ओबामा ?
उसकी " उम्मीद की धृष्टता "( औदासिटी ऑफ़ होप ) की सीमा क्या होगी ?
कहाँ तक एक राष्ट्र ,समाज के रूप में हम परिपक्व हुए हैं ?
अगर इन सवालों का फौरी तौर पर उत्तर न मिले तो भी आज रात अमेरिकन ओबामा के प्रथम भाषण का इन्तेजार करें और उसका लुत्फ़ उठायें .

Monday, January 19, 2009

बराक हुसैन ओबामा - मेरे पिता के सपने

क्या संदेश देती है बराक की संस्मरण कथा - मेरे पिता के सपने
बराक अपनी पहचान और पिता के सपनों की खोज में केन्या - नैरोबी और उससे आगे लुओ जनजाति की पुरानी जगह जाते हैं .अपने पिता , दादा और अन्य पुरखों की कब्र पर पहुँच कर रोते हैं और अपना जी हल्का करते हैं. अपनी दादी से अपनों की कहानी सुनते हैं . केन्या में अपने सारे लोगों से मिलते हैं.उनकी जिंदगी के सारे राग रंग से रु-ब -रू होते हैं। ये मुलाकातें हर्ष और दुःख दोनों देतीं हैं.भाई ,बहनों , फुआ ,चाचा तमाम लोगों का साथ बराक को अच्छा लगता है.नैरोबी विश्वविद्यालय में जर्मन पढाने वाली अपनी बहन औमा के साथ ओबामा यह यात्रा करते हैं.नैरोबी एअरपोर्ट पर एक रिसेप्शनिस्ट से उनकी मुलाकात होती है जो ओबामा के सर नेम के आधार पर डॉ ओबामा ( बराक के पिता ) को याद करने लगती है.२५ साल के बराक को पहली बार यह महसूस होता है की उसका नाम एक पहचान और सुकून दे सकता है.अपनी पिता और अपनों की खोज में बराक अपनी जीवन यात्रा वृत्तांत लिख देते हैं.माँ, नाना,नानी,तत्कालीन अमेरिका में व्याप्त रंगभेद ,पूर्वाग्रहों,अपने सौतेले पिता लोलो का स्नेहिल व्यवहार ,अपने लालन ,पालन और शिक्षा की कथा कहते है.हर तरह की परेशनियों का सामना । करना पड़ा किशोर ओबामा को .भौतिक सन्दर्भ में मामूली सी जिंदगी .पर हौसला अफजाई का पुरा माहौल .ओबामा की माँ अपने माता पिता की अकेली संतान । नई कोमल ह्रदय की महिला . नाना नानी का भरपूर प्यार . माँ का पढ़ाई के प्रति सजग रुख . दस साल में पिता से पहली मुलाकात .अपने स्कूल में पिता को आमंत्रित किया जाना और पिता का भाषण . शिकागो शहर में सामुदायिक कार्य और उसके अनुभव . बढ़िया और दिल को छूने वाला वर्णन ।
एक मार्मिक प्रसंग बराक अपनी शादी शमारोह का देते हैं.शादी में बराक परिवार के सदस्य - माँ और पिता दोनों ओर के- उपस्थित है. बराक की माँ ,नानी ,बहन औमा ,भाई रॉय, बहन माया और अन्य .बराक की नज़र बहन औमा पर पड़ती है . उसकी आखें सूजी हुई हैं.लगता है की औमा अपने स्वर्गीय पिता को याद कर रो रही है।
बड़ा भाई रॉय , माँ और नानी के साथ हैं.रॉय के दोनों तरफ़ माँ और नानी ,और रॉय का हाथ उनके कन्धों पर .रॉय कहता है की अब मेरी दो माएं हैं और बराक की नानी कहती हैं की यह उनका नया बेटा है.एक और प्रसंग है -बराक अपने दादा के एक दस्तावेज को देख रहा है.हुसैन ओन्यनांगो , 1928 में नैरोबी में एक गोरे मालिक का रजिस्टर्ड सर्वेंट , हुसैन की नौकरियों का क्रमवार व्योरा ,मुख्य रूप से रसोइए का काम .अपने पैतृक घर में वो पुरानी चिठ्ठियों के पुलिंदों में अपने पिता और दादा के पत्र व्यवहार पढ़ते हैं।
बराक इस कथा की शुरूआत , नैरोबी से अपने पिता के दुखद अंत वाले कॉल से करते हैं.पिता, उनके सपनों और पहचान की यात्रा की शुरुआत होती है.बराक अपने संस्मरण की समाप्ति अपनी शादी समारोह के वर्णन से करते हैं. उपस्थित बन्धु बांधव , शादी समारोह के अंत में आयोजित ड्रिंक्स की शुरुआत अपनी पितरों की याद में ड्रिंक्स को धरती पर अर्पित कर करते हैं।
याद रहे की बराक का यह संस्मरण १९९४ में लिखा गया था . उस समय तक उनकी उपलब्धि , हारवर्ड ला रीभिऊ के पहले अश्वेत प्रेजिडेंट की थी . दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश और उसकी सबसे ऊँची कुर्सी दूर थी ।
एक अपूर्ण घर का लड़का ,अपनी पहचान की तलाश में लगा हुआ , तमाम बाधायों को पार करता कल अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा.बराक ने यह साबित कर दिया की इस दुनिया में मानव निर्मित कोई भी बाधा दुर्गम्य नहीं है।
खैर यह तो खासियत हुई बराक की .लेकिन बराक की यह कथा और जीवन यात्रा ,अमेरिका - देश और समाज के बारे में क्या कहता है ?क्या इसे अद्भुत देश और समाज कह सकते हैं ?क्या इस कथा में सारी दुनिया और विषम परिस्थितियों से जूझ रहे लोगों के लिए लोगों के लिए कोई संदेश है ?
और अंत में हिन्दुस्तानी बराक कैसा होगा ?

Friday, January 9, 2009

बंजारा जीवन का रोमांस

बंजारों का जीवन कवियों ,संतों और रसिकों की कवितायों , सीखों और आकाँक्षाओं में बारबार आनेवाल विम्ब है.बंजारा उन्मुक्त और स्वतंत्र जीवन का प्रतीक .मानव की अदम्य जिजीविषा का प्रतीक ,मतलब मनुष्य की खोजी प्रतीक का रूमानी मुर्तिकरण या अमूर्तिकरण.कहें तो राहुल सांकृत्यायन , मार्को पोलो , हुवें त्सांग और कोलंबस वास्कोडिगामा जैसी आत्मायों की कम्पोसित साक्षात् मूर्ति।
कवियों के लिए तो उनकी सारी रूमानियत का स्थूल रूप .और जब यह किसी सधे गायक के स्वर में सुनें तो आप भी पुरे मस्त हो जाते हैं।
यूरोप में फैले हुए जिप्सी समुदाय यूँ तो सदियों से प्रताडित और शोषित रहा है पर यूरोपियन साहित्य में रूमानियत का स्थाई प्रतीक के तौर पर रहा है।
इतिहासकार कहते हैं कि भोपाल ताल का निर्माण लख्खा बंजारा नामके के सरदार ने बनाया था।
बंजारों कि प्रेम कहानियाँ ,कठिन परिश्रम , त्याग और बहुदारी के किस्से मध्य भारत में प्रचलित हैं।
जसमा ओडन की अद्भुत प्रेम कथा गुजरात , मालवा ,छत्तीसगढ़ और संभलपुर तक लोकजीवन में रची बसी है ।
मार्मिक प्रेम कथा है जसमा ओडन की । नादिरा बब्बर ने जसमा ओडन की लोक कथा को रंगमंच पर जीवित किया है।
बंजारों और उनके जीवन का रूमानी आकर्षण इस तरह बना रहे.कल मैं अनुराधा पौडवाल जी की एक गायन समारोह में गया था .बंजारों की महिमा उनके एक मधुर गीत में सुना और उनके जीवन के रोमांस में खो गया.

Thursday, January 8, 2009

सत्यम के गुनाहगार कौन कौन ?

सत्यम प्रकरण के गुनाहगार कौन कौन हैं ?
सत्यम कम्पनी में ६००० करोड रुपये के घपले में आखिर गुनाहगार सिर्फ़ उस कंपनी के चेयरमैन राजू हैं ?सत्यम देश की चौथी सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। नास्डाक स्टॉक एक्सचेंज में यह लिस्टेड है। इस को बेस्ट कारपोरेट गोवेर्नांस का अवार्ड मिल चुका है। इस कंपनी को आंध्र के तत्कालीन मुख्य मंत्री ने राज्य के सफलता के नमूने के तौर पर राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के सम्मुख पेश किया गया था । एक बिलियन डॉलर से अधिक की विदेसी कमाई वाली कंपनी .
उपलब्धियों और सम्मानों की लम्बी फेहरिस्त है।
भारत में चालू आर्थिक सुधारों और उभरते भारत की नई तस्वीर और उसका मुखौटा सत्यम ।
जैसा के समाचार पत्रों ने लिखा है यह भारत का सबसे बड़ा कारपोरेट फ्रौड़ है।
सवाल यह उठता है कि कि सत्यम के इस गुनाह में कौन कौन शरीक है ?
इस घोटाले को रोकने कि जिम्मेवारी किस किस की थी ?
आख़िर वो कौन सी मजबूरियां थी कि राजू को घपले में अपनी संलिप्तता को स्वीकार करना पड़ा ?
कंपनी एक्ट के प्रावधानों का क्या हुआ ?
कंपनी के बोर्ड में नियुक्त स्वतंत्र निदेशकों ने अपने कर्तव्य का निर्वहन कैसे किया ?
कंपनी एक्ट के तहत ऑडिट का प्रावधान है .ऑडिट करने वाली कंपनी pwc जैसी नामी संस्था ।
सेबी एक रेगुलेटर के तौर पर ।
म्यूचुअल फुन्ड्स में तैनात वित्तीय विश्लेषकों की पुरी फौज .
सब के सब पुरी तौर फेल या शरीक
अंत में यक्ष प्रश्न
क्या सत्यम एक मात्र बड़ी कंपनी है जिस में ऐसा घपला हो रह था ?
जिस तौर तरीकों से इस घपले को सत्यम में अंजाम दिया गया वह कोई नायब तरीका है जिस की जानकारी और नामी गिरामी कोमानियों को नहीं है ?
इन सवालों के उत्तर हम सब को फौरी तौर पर ढूँढना होगा.












Sunday, January 4, 2009


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जनवरी २००९ की शीत लहर


जब यहाँ दिल्ली में ७-८ डिग्री पहुँचने पर ही लोग बाग दूबक जाते हैं तो पता नहीं बिजली आने के पहले यूरोप और उत्तर अमेरिका के रेड इंडियन आदि -२० डिग्री को कैसे झेलते होंगें.शायद उस दौर में उत्तर भारत की तर्ज पर शीत लहर से मौतें होती होंगी .
फिलहाल सर्दी से जिन्दगी सिकुड़ गई है।