भारत और अमेरिका में बुनियादी फर्क है ,भला इससे कौन इनकार कर सकता है।
लेकिन कल्पना के आकुल उड़ान में किसी विघ्न की जगह कहाँ है?
और सोचने से परहेज क्यों ?
निसंदेह हमें भी एक ओबामा खोजना होगा।
बिल्कुल वैसा ही ,जो की भारतीय समाज के मार्जिन की उपज हो।
दलित,शोषित और उपेक्षित समुदाय का लाडला या लाडली।
सुदूर पूर्व उत्तर या सुदूर दक्षिण का ।
गंगा यमुना के मैदान का भी हो सकता है।
पर तथाकथित भारतीय समाज की मुख्यधारा का नहीं ।
लेकिन उसकी " उम्मीद की धृष्टता " की कोई सीमा न हो।
उसके सोच के दायरे में पूरा विश्व हो ।
"उदार चरिताम वसुधैव कुटुम्बकम " की उद्दात भावना से ओत प्रोत ।
भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक विरासत के स्वस्थ और प्रगतिशील धारा में रचा बसा ।
जिसे भारतीय होने का गर्व हो ।
जिसे अपने पुरखों के त्याग और शोषण के इतिहास की स्मृति तो हो पर उससे बंधा न हो ।
जो अपने आप को महज शिकार न समझे।
बल्कि सारे लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण हो ।
सबका प्रतिनिधित्व करने का माद्दा हो जिसमें ।
सारांश में विकल्प हो वर्तमान का ,इसका सब्स्तिचुत नहीं ।
क्या हम सब ओबामा के भारतीय रूप और संस्करण के लिए तैयार हैं ?
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
4 weeks ago
1 comment:
बहुत सुंदर बातें कही हैं....पर अभी तो दिखाई नहीं दे रहा...;इंतजार तो है सबको शायद ।
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