Monday, January 19, 2009

बराक हुसैन ओबामा - मेरे पिता के सपने

क्या संदेश देती है बराक की संस्मरण कथा - मेरे पिता के सपने
बराक अपनी पहचान और पिता के सपनों की खोज में केन्या - नैरोबी और उससे आगे लुओ जनजाति की पुरानी जगह जाते हैं .अपने पिता , दादा और अन्य पुरखों की कब्र पर पहुँच कर रोते हैं और अपना जी हल्का करते हैं. अपनी दादी से अपनों की कहानी सुनते हैं . केन्या में अपने सारे लोगों से मिलते हैं.उनकी जिंदगी के सारे राग रंग से रु-ब -रू होते हैं। ये मुलाकातें हर्ष और दुःख दोनों देतीं हैं.भाई ,बहनों , फुआ ,चाचा तमाम लोगों का साथ बराक को अच्छा लगता है.नैरोबी विश्वविद्यालय में जर्मन पढाने वाली अपनी बहन औमा के साथ ओबामा यह यात्रा करते हैं.नैरोबी एअरपोर्ट पर एक रिसेप्शनिस्ट से उनकी मुलाकात होती है जो ओबामा के सर नेम के आधार पर डॉ ओबामा ( बराक के पिता ) को याद करने लगती है.२५ साल के बराक को पहली बार यह महसूस होता है की उसका नाम एक पहचान और सुकून दे सकता है.अपनी पिता और अपनों की खोज में बराक अपनी जीवन यात्रा वृत्तांत लिख देते हैं.माँ, नाना,नानी,तत्कालीन अमेरिका में व्याप्त रंगभेद ,पूर्वाग्रहों,अपने सौतेले पिता लोलो का स्नेहिल व्यवहार ,अपने लालन ,पालन और शिक्षा की कथा कहते है.हर तरह की परेशनियों का सामना । करना पड़ा किशोर ओबामा को .भौतिक सन्दर्भ में मामूली सी जिंदगी .पर हौसला अफजाई का पुरा माहौल .ओबामा की माँ अपने माता पिता की अकेली संतान । नई कोमल ह्रदय की महिला . नाना नानी का भरपूर प्यार . माँ का पढ़ाई के प्रति सजग रुख . दस साल में पिता से पहली मुलाकात .अपने स्कूल में पिता को आमंत्रित किया जाना और पिता का भाषण . शिकागो शहर में सामुदायिक कार्य और उसके अनुभव . बढ़िया और दिल को छूने वाला वर्णन ।
एक मार्मिक प्रसंग बराक अपनी शादी शमारोह का देते हैं.शादी में बराक परिवार के सदस्य - माँ और पिता दोनों ओर के- उपस्थित है. बराक की माँ ,नानी ,बहन औमा ,भाई रॉय, बहन माया और अन्य .बराक की नज़र बहन औमा पर पड़ती है . उसकी आखें सूजी हुई हैं.लगता है की औमा अपने स्वर्गीय पिता को याद कर रो रही है।
बड़ा भाई रॉय , माँ और नानी के साथ हैं.रॉय के दोनों तरफ़ माँ और नानी ,और रॉय का हाथ उनके कन्धों पर .रॉय कहता है की अब मेरी दो माएं हैं और बराक की नानी कहती हैं की यह उनका नया बेटा है.एक और प्रसंग है -बराक अपने दादा के एक दस्तावेज को देख रहा है.हुसैन ओन्यनांगो , 1928 में नैरोबी में एक गोरे मालिक का रजिस्टर्ड सर्वेंट , हुसैन की नौकरियों का क्रमवार व्योरा ,मुख्य रूप से रसोइए का काम .अपने पैतृक घर में वो पुरानी चिठ्ठियों के पुलिंदों में अपने पिता और दादा के पत्र व्यवहार पढ़ते हैं।
बराक इस कथा की शुरूआत , नैरोबी से अपने पिता के दुखद अंत वाले कॉल से करते हैं.पिता, उनके सपनों और पहचान की यात्रा की शुरुआत होती है.बराक अपने संस्मरण की समाप्ति अपनी शादी समारोह के वर्णन से करते हैं. उपस्थित बन्धु बांधव , शादी समारोह के अंत में आयोजित ड्रिंक्स की शुरुआत अपनी पितरों की याद में ड्रिंक्स को धरती पर अर्पित कर करते हैं।
याद रहे की बराक का यह संस्मरण १९९४ में लिखा गया था . उस समय तक उनकी उपलब्धि , हारवर्ड ला रीभिऊ के पहले अश्वेत प्रेजिडेंट की थी . दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश और उसकी सबसे ऊँची कुर्सी दूर थी ।
एक अपूर्ण घर का लड़का ,अपनी पहचान की तलाश में लगा हुआ , तमाम बाधायों को पार करता कल अमेरिका का राष्ट्रपति बनेगा.बराक ने यह साबित कर दिया की इस दुनिया में मानव निर्मित कोई भी बाधा दुर्गम्य नहीं है।
खैर यह तो खासियत हुई बराक की .लेकिन बराक की यह कथा और जीवन यात्रा ,अमेरिका - देश और समाज के बारे में क्या कहता है ?क्या इसे अद्भुत देश और समाज कह सकते हैं ?क्या इस कथा में सारी दुनिया और विषम परिस्थितियों से जूझ रहे लोगों के लिए लोगों के लिए कोई संदेश है ?
और अंत में हिन्दुस्तानी बराक कैसा होगा ?

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