१८ वीं सदी में मुग़ल सल्तनत के कमजोर होते हीं बिहार यूरोपीय तिजारती कंपनियों , मराठों ,नबावों के बीच अधिपत्य की लडाई अखाडा बन गया.
१७४५ तक बिहार मराठों ,बंगाल के नबावों और अफगानी फौजों के द्वारा रौंदी जाती रही .
बेहाल रियाया और बिहार की हुकूमत के कई हक़दार .
पर इस उथल पुथल के बीच पटना का व्यापारिक महत्व निरंतर बढ़ता रहा . बिहार इसी बीच नील और अफीम की खेती और पटना इस व्यापार का मुख्य केंद्र . पूर्व ,पश्चिम और उत्तर दिशा में देसी विदेशी व्यापार का केंद्र .स्थानीय और विदेशी व्यापारी की भरमार .डच , फ्रांसीसी , अंग्रेज, आर्मेनियाई , पश्चिम उत्तर प्रान्त , तिब्बत सब जगह के लिए और सब जगह का माल .
पटना और मगध को रौंदती रघुजी भोंसले , दरभंगा के अफगानों और ईस्ट इंडिया कम्पनी की फौजें .
१७६४ के बाद क्रमशः ,बिहार में ईस्ट इंडिया कंपनी की मजबूत होती हुकूमत और जनता भी हलकानी के हालिया दौर से मुक्त . बाहरी फौजों के आक्रमण से मुक्ति . परमानेंट सेत्तलेमेंट की बुनियाद .
और राजनैतिक स्थायित्व और व्यापार जनित शहरी समृधि के इस दौर में गंगा नदी के धार से पटना ऐसा दिखता था.
1 comment:
कौशल जी चित्र बहुत ही सुंदर है। मैं ने इस चित्र को पिकासा में ट्रीट किया है। ट्रीटेड चित्र की प्रति आप को प्रेषित करना चाहता था लेकिन आप का ई-मेल ही नहीं मिला। यदि आप का ई-पता मिले तो उसे आप को भेजूँ। ट्रीट करने के बाद तो चित्र का नक्शा ही बदल गया है।
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