Friday, February 6, 2009

बिहार का विकास किस रास्ते से ?

बिहार का वर्तमान सन्दर्भ क्या है ?
७५ से ८० % आबादी ग्रामीण। ग्रामीण जनता का जीवन यापन का मुख्या जरिया खेती और नॉन फार्म इन्फोर्मल क्रिया कलाप ।
तक़रीबन हर ग्रामीण परिवार का कम से कम एक सदस्य भारत वर्ष के विभिन्न औद्योगिक क्षेत्रों में औद्योगिक मजदूर , रिक्साचालक , सब्जी और फल बेचनेवाले , कुछ छोटे व्यापारी , कंप्युटर रीपैर करने वाला, दिल्ली के ऐ टी एम् के सामने बैठा गार्ड , बड़े शहरों के गेट वाली कोलनियों का चौकीदार । सरकारी नौकरियों में स्टाफ सेलेक्शन कमीशन , रेलवे भरती बोर्ड और बैंक भरती बोर्ड से प्राप्त की जाने वाली नौकरियों में बिहारी युवा एन केन प्रकारेण पुरे भारत वर्ष में १० -१५ वर्षों में छा गए हैं.इन प्रवासी बिहारियों और उनकी दशा पर कभी अलग से दृष्टि पात किया जायेगा ।
बिहार छोटे किसानों , छोटी जोत वाले , जिनकी कुल जोत अलग अलग टुकडों में गाँव के चारों ओर बिखरी हुई है। गाँव की पारंपरिक सामुदायिक ( गैर-मजरुआ जमीन और नदी तालाब जैसे अन्य) संसाधन जिन पर हिंसक दबंगों और दलालों का कब्जा .अगर मध्य बिहार ( मगध ) की बात करें तो गाँव की भौगोलिक स्थिति - खेत, जोत , आहार , पयीअन, अलंग ,गाँव से बाहर निकलने का रास्ते आदि tamaam बदहाली के waabjood आज भी अपनी मध्य युगीन स्थिति में है। टेढे मेढे अलंग और उसके किनारे के आहर, पयीअन जिसमें फल्गु और बारिस के पानी से सिंचाई होती है ,जिसका कभी जमींदारी व्यवस्था के तहत गुआम और यदा कदा गोहार से सामुदायिक श्रम और भागी दारी से निर्माण और रख रखाब होता था .आज बदहाली और बर्बादी का कारण बन गया है। क्योंकि पिछले छः दशकों में जिसक मन किया पुरी श्रधा से अपनी जोत में कब्जा कर बरबाद कर दिया । और बिहार की भ्रष्ट जातिवादी सरकारों और व्यवस्था को इन बारीक चीजों से और बेहतर प्राथमिकताएं थी।
फिलहाल बिहार की भौगोलिक सीमा और उसके भीतर रहने वाले बिहारियों और उनकी दुनियावी स्थिति की ही बात की जाय । बिहार के आर्थिक विकास की निहायत जरूरी ढेर सारी शर्तें , आर्थिक विकास शास्त्रीय कितावों के आधार पर , गिनाये जा सकती हैं। पर एक जरूरी शर्त है वहाँ के ग्रामीण क्षेत्रों और खेती का विकास ।
हर गाँव के लिए हर मौसम laayak सड़क । पर सड़क कहाँ और कैसे? क्या खेती और सिचाई के लिए निर्मित पारंपरिक तटबंध ( अलंग ) पर नए रोड बनाए जा सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सरकारी जमीं नहीं बची है। एक- एक इंच जमीन पर पिछले हजारों सालों से खेती हो रही है।
सड़क , स्कूल , सामुदायिक भवन , अस्पताल आदि के लिए जमीन का इन्तेजाम सरकार ही कर सकती है। किसानों को जमीन दान करने की अपनी सीमा है। बिना ठोस नीति और प्रयास के इन सारी जरूरतों के लिए लैंड मिलना मुश्किल है . जाहिर है की सही समझ पर आधारित ठोस नीति , दृढ़ राजनैतिक और प्रशासनिक इच्छाशक्ति ग्रामीण क्षेत्र में आधारभूत संरचना के लिए जरूरी है।
प्रदेश की छोटी जोत और वो भी टुकडों में विभक्त और बिखरी खेती के विकास और आधुनिकरण की पूर्व शर्त है चक बंदी । छोटी जोत और खेतों को इक्कठा करना ।
अगर ये बातें सही है और सोच की दिशा वाजिब तो अगला prashn है की क्या ये मुद्दे बिहार के चालु निजाम -ऐ- हुकूमत के जेहन और एजेंडा में शामिल है ?
आप भी अगर ऐसा mahsus करते हैं तो likhiyegaa ?

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