( एक पत्रकार मित्र ने यह लेख भेजा है .किसी कारण वश गुमनाम रहना चाहते है। पटना का गाँधी मैदान बिहार और पटना के जनजीवन का आइना है और यह मैदान सब के लिए खुला है। राजनैतिक रैलियाँ , सरकारी और सतरंगी विपक्ष से लेकर मेलों, धार्मिक प्रवचनों , योग गुरुओं और तरह तरह की सेहत और यौन वर्धक दवा बेचनेवालों , आल्हा -उदल के गीत गाने वालों से लेकर निठल्लों तक सब को गाँधी मैदान सुविधा ,आश्रय और श्रोता मुहैया करता है.उसी भवन के तहत यह लेख पोस्ट किया जा रहा है.आप की टिप्पणियों का स्वागत है।)
बिहार की बदहाली की शुरुआत और राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी पहचान सातवें दशक से बनने लगी थी। यूं तो १९६६-६७ में केंद्रीय बिहार में बाढ़ और सुखाड़ से बनी दुर्भिक्ष की स्थिति ने भी देश का ध्यान बिहार की ओर खिंचा था .उस दौर में पुरे देश की स्थिति और बिहार की स्थिति में ज्यादा फासला नहीं था। असली गिरावट की शुरुआत और सपनों का अंत ७४-७५ तक आते आते दिखना शुरू हो गया था । भोजपुर का किसान आन्दोलन और लोक नायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में १९७४ का बिहार आन्दोलन , बिहारी समाज के बदलाव की चाहत का प्रकटीकरण था । १९७७ में सत्ता परिवर्तन और तीन साला प्रयोग कोई स्थाई परिवर्तन नहीं ला पाया। हाँ एक उम्मीद जरूर जगा गया । वर्ग , जाती और सामुदायिक स्तर पर ।
१९८० के राजनैतिक शक्ति उन्हीं लोगों के हाथ वापस आ गयी जिनके विरूद्ध ७० के दसक की राजनैंतिक लड़ाई। राजनीति की विडम्बना यह की ७० के दशक के प्रमुख राजनैतिक खलनायक अभी हाल तक बिहार के सत्ता पक्ष से जुड़े थे।१९८० के बाद ही बिहार मरणासन्न स्थिति में आ गया था । १९८० से ९० तक उन्हीं सामजिक और राजनैतिक शक्तियों का वर्चस्व बिहार में बना रहा। जातिवाद और सरकारी खजाने को लूटने का खुला खेल चलता रहा । संसदीय राजनीति चंद जातियों के अलग अलग खेमों की चेरी बन कर रह गई। बिहार के सारे कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक चंद जातियों के । पटना के ललित नारायण मिश्रा संस्थान के सारे पद एक ही जाति के लिए । निर्लज्जता और मनमानी के सैंकडों उदहारण गिनाये जा सकते हैं।
बदहाली से उबी जनता ९०-९१ में एक नए राजनैतिक नेतृत्व को हुकूमत की बागडोर सौंपती है। लेकिन अगले पन्द्रह साल में जनता फिर ठगी जाती है। वो तमाम चीजें जो पहले हो रही थी वो और बड़े पैमाने पर और कुरूपता , निर्लज्जता के साथ जारी रहती है। बदहाल बिहारी जनता , खास कर युवा पीढी , रोजी रोटी और शिक्षा की खोज में पुरे भारत वर्ष में फ़ैल जाते हैं। अपनी मेहनत और प्रतिभा के बदौलत नयी जगह में अपनी ठौर ढूंढते हैं.राष्ट्रीय विमर्श में और मीडिया में बिहार की छवि नकारात्मक और उपहास की हो जाति है।फलस्वरूप बिहारी हर जगह पूर्वाग्रह और उपहास का शिकार बनते हैं। यही नहीं पागलों के जिस गिरोह का मन किया , बिहारियों का कत्लेआम कर देश को अपना घिनोंना संदेश देता रहा.
१९७० से लेकर २००० तक देश के बहुत सारे राज्य तेजी से तरक्की करतें हैं। बिहार , गरीबी और भ्रष्ट्राचार का रूपक बन जाता है।
बिहार के विकास का प्रश्न विद्वत जनों के लिए यक्ष प्रश्न बन कर खडा हो जाता है।
लेकिन पिछले तीन सालों से बिहार से बुरी खबरें कम में आ रहीं हैं। जानकार लोग कहते हैं की बिहार में न्याय के साथ विकास की इमानदार पहल राज्य के मुख्यमंत्री कर रहें हैं। हलाँकि सरकारी तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार हाल में चर्चा के दायरे में है।
अगर बिहार का वर्त्तमान राजनैतिक नेत्रित्व राज्य का अगले सात आठ साल में काया पलट कर देता है तो , राजनीति गठबंधन और मोर्चे की सरकारों के इस दौर में क्या भारत का नेतृत्व करने का हकदार ,राजनैतिक और नैतिक रूप से बन जायेगा ?
सोचने में क्या बुराई है ?
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
4 weeks ago
3 comments:
सर्वप्रथम ,अत्यन्त सार्थक इस आलेख हेतु साधुवाद !
बहुत सही प्रसंग उठाया है आपने......
आज जिस तरह से बिहार का काया पलट हो रहा है,इसने सिद्ध कर दिया है कि शीर्ष नेतृत्व में यदि प्रबल इच्छा शक्ति हो तो नामुमकिन नामक कोई शब्द ही नही...एक व्यक्ति ने बीडा उठाया और बरसों से पूर्णरूपेण ध्वस्त व्यवस्था की नकेल कसनी शुरू कर दी..आज यह देश के समस्त जननायकों के लिए अनुकरणीय है.
जहाँ तक कमियों का प्रश्न है,पूरी की पूरी व्यवस्था/तंत्र ही जब वर्षों के घुन से भीतर तक सड़ी हुई थी तो एक एकेला व्यक्ति कितना कर सकता है.अब हाथों में कोई जादू की छड़ी तो है नही,कि एक बार घुमाया और सब साफ़..नीतिश जी को भी काम उन्ही से करवाना है जिनके रगों में भ्रष्टाचार लहू के साथ दौड़ रहा है.........
पर इतना तो है,यदि एक पारी और राज करने का अवसर वो पाएंगे तो निश्चित ही दस वर्षों में दूषित रक्त को साफ़ करने में बहुत हद तक सफलता पाएंगे.......और नरेन्द्र मोदी,रमन सिंह या नीतिश जैसे व्यक्ति के हाथों यदि देश की बागडोर रही ,तभी हम देश की खुशहाली के प्रति आशान्वित रह सकते हैं.
It was great to read such an enlightening article by you sir adn the reply by Ranjana jee is equally commendable. I am a film maker and I recently directed my first feature documentary, "BRING BACK BIHAR - MOMENT OF AWAKENING". i would want to send you the DVD. Kindle mail me your address on nitinchandra25@gmail.com
To know more about my film, please google search "BRING BACK BIHAR" by Nitin Chandra.
Kind Regards,
Nitin.
I am not blaming politicians...
It is we, who have forgotten to work..., have started believeing in casteism, and saw Delhi and other places for models of education...,
I am hopeless for at least 10-15 years...
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