Friday, February 6, 2009

बिहार में परिवर्तन

( मित्र वीरू ने ये उदगार पहले पोस्ट पर दिया है। संवाद को आगे बढाते हुए इसे यहाँ पेश किया जा रहा है । पढ़ें और इस संवाद की प्रकिर्या को आगे करें )

सवाल निहायत ही वाजिब है। क्या बिहार बदलेगा?
अथवा क्या बिहार नहीं बदलेगा ?
बिहार के बारे में चीजें वैसे भी अतिशयोक्ति परक तरीके से बताईं जाती हैं और सुनी जाती हैं । मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि अधिकाँश बिहारी, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, ख़ुद भी चाहते हैं कि उनके जीवन से इस अलंकार को बिल्कुल ही गायब नहीं कर दिया जाए. बिहार के बारे में जो बात मोटेतौर पर बिहारी भी स्वीकार करेंगे कि - वह एक ठहरा हुआ अथवा ऋणात्मक रूप से गतिशील समाज और राज्य व्यवस्था है.
आप बिहार में उत्तर से दक्षिण, पूरब से पश्चिम, कहीं भी घूम आइये बिहार एक जैसा ही दिखेगा. ऐसी हेठी बिहार के अलावा आप किसी दूसरे प्रदेश में नहीं पाएंगे. सड़क विहीन, बिजली विहीन, पेयजल विहीन, बाज़ार विहीन, स्कूल-कॉलेज विहीन, अस्पताल विहीन फिर भी तने हुए और ऐंठे हुए ।
बिहार कहाँ से बदलेगा, वह राह इस बौद्धिक जुगाली के बाहर जाकर मिलती है। जो समाजों के इतिहास के बारे में जानते-समझते हैं, वे जरूर मानेंगे कि बिहार का समाज किसी आदिम समाज का जीवित रूप नहीं है। उसके पास आर्थिक, सांस्कतिक और सभ्यतामूलक विकास का गौरवपूर्ण इतिहास है। गंगा और सहायक नदियों द्वारा बनाई गयी दुनिया के पैमाने पर मुकाबला करने वाली ऊर्वरा भूमि है, गरीब लेकिन कर्मठ किसान ,मजदूर और मेहनतकस अवाम है। पूरे के पूरे हजारों की तादात में दुनिया भर में बिहारी गाँव/मोहल्ला बसे हुए हैं. वे शिक्षित हैं, हूनर वाले हैं, वे भी बिहारी समाज के विकास में सहयात्री हो सकते है. लेकिन पेंच यहीं पर है .
बिहार के बदलाव में सबकी भागीदारी कैसे बने ? इस बदलाव के अगुआ कौन कौन लोग हो रहे हैं ?
इन सवालों और पेंच के अलग - अलग लहरों ( घुमाव ) पर चर्चा आगे होगी ।
वीरेंदर

2 comments:

सुरेन्द्र Verma said...

Intjaar kare...............

Dr. Virendra Singh Yadav said...

apne sahi kaha mere dost isi tarah niyamit likhate rahe.blog ki duniya me apaka swagat hai