बिहार की बदहाली और उससे उपजी जीवन संघर्ष कि तीव्रता , कुरूपता और तमाम जद्दोजहद के बीच भी ढेरों प्रेरणादायक प्रसंग बिहार में यत्र - तत्र - सर्वत्र बिखरे हैं. देश भर में बिहार कि इस बेचैन करने वाली बदहाली को महसूस करने के लिए लोगों को बिहार आने की जरूरत नहीं है . आज शायद देश का शायद ही कोई कोना बचा हो जहाँ बिहारी और खास कर बिहारी मजदूर और कारीगर काम नहीं कर रहें हैं. देश कि मास मीडिया द्वारा बिहार और बिहारियों कि निर्मित एक खास छवि तो जग जाहिर है. पर इधर हाल साल से समाचार पत्रों और टी वी चैनेल्स में बिहार से ख़राब खबरें कम आ रही हैं.कोसी तटबंध टूट ,प्रलय और उससे उपजी मानवीय त्रासदी आदि को अगर छोड़ दिया जाय तो विकास परक खबरें ही आ रही हैं।
आज बिहार का मंत्रिमंडल बेगुसराय के एक गाँव में अपनी खास बैठक करने जा रहा है ।
तो क्या सचमुच बिहार विकास के रास्ते पर है ?
या यह सब नए जमाने कि नई नौटंकी भर है ?
वैसे तो यह निर्विवादित सत्य है कि आर्थिक और सामजिक विकास और वह भी बिहार की ठोस परिस्थिति में दीर्घ कालीन और चुनौती भरा कार्य है । पर जानकार कह रहें है की बिहार में सामजिक न्याय के साथ विकास हो रहा है.आर्थिक विकास के लिए अपरिहार्य आधार भूत संरचना के सब आयामों के तीव्र विकास का प्रयास सरकारी स्तर पर हो रहा है.राजनीति और सत्ता शीर्ष पर भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लग रहे हैं.संगठित अपराध तंत्र , माफिया और राजनीति के गठजोड़ को तोडा जा चुका है.आम तौर पर जनता सुरक्षित महसूस कर रही है.शहरों में सड़क ,नाली ,बिजली आदि आधारभूत संरचना का काम हो रहा है. राज्य की सडकों का जीर्णोधार हो रहा है.राज्य भर में स्वाथ्य के क्षेत्र में उत्साह बर्धक काम हो रहा है. सरकारी अस्पतालों की दशा सुधर रही है.ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल नियमित रूप से काम कर रहे हैं. नए शिक्षकों की नियुक्ति हो रही है . स्कूल से बाहर बच्चों की बड़ी जमात स्कूल में लायी गयी है.धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए विशेष योजनायें लागू कि जा रही हैं. स्कूल में मिड डे मील कार्यकर्म चालू है ।पंचायत चुनावों में हर जगह महिलायों के लिए ५० % आरक्षण , महिला सशक्ति कारन की नयी इबारत लिख रहा है.हर गाँव और पंचायत में कृषि और ग्रामीण विकास से सम्बंधित काम हो रहे हैं।किसानों को फसल बर्बादी होने पर मुआवजा मिल रहा है.
तो क्या बिहार में सामजिक न्याय के साथ आर्थिक विकास के नए दौर की शुरुआत हो चुकी है ?
विकास और बदलाब का यह झोंका स्थाई हो गया है ?
क्या बिहारी समाज जातिवाद और भ्रष्टाचार के defining feature से ऊपर उठ रहा है ?
क्या वहाँ का समाज और राजनीति नए मुहावरे और लक्ष्य गढ़ रही है ?
क्या वहाँ कोई नया सामाजिक और राजनैतिक consensus बन रहा है ?
जो हो रहा है क्या वह सब चिरस्थायी रह पायेगा ?
इन सारे सवालों पर चिंतन और बहस कि प्रयाप्त गुन्जायिश है ।
दिवाली भी शुभ है और दीवाली भी शुभ हो
4 weeks ago
4 comments:
बिहार बदल रहा है .टुकडे-टुकडे में जातिगत आधार पर बँटा यह प्रदेश अब सरकार द्वारा किए गए हर ठोस काम में रोशनी देख रही है .इस सरकार को ५ साल क्या १० साल और देना चाहिए .
इस सरकार के पास केवल नारे ,मुहावरे ही नही गिनाने के लिए काम भी है .
आलोचना करना आसान है। पर बिहार जिस मुकाम पर पहुंच गया था, उसे दुरूस्त करने में काफी समय लगना है।
रही बात गांव मे कैबिनेट की मीटिंग बुलाने की तो आलोचकों को पता होना चाहिए कि संसद की उप समितियों और विभिन्न मंत्रालयों की सलाहकार समितियों की बैठकें कभी मसूरी में तो कभी कश्मीर की वादियों में होती हैं। तब किसी ने कुछ नहीं कहा।
मेरे विचार से गांव में बैठक होने से ग्रामीणों में एक प्रकार की जागृति आएगी और सरकार को ज्यादा एकाउंटेबल बनाने में मददगार साबित होगी।
बिहार में सकारात्मक बदलाव सुनसुनकर बहुत खुशी हो रही है। यह पूरे भारत के लिये शुभ लक्षण है।
shuruat achhi hai. Gaon me jaakar cabinet ki baithak karna bilkul achhi baat hai. Hamare Rohtas ke SP sahab to Kaimur ke pahad par Aadivasiyon ke gaon me baith kar pure jila ke law and order ki samiksha kiye. Logo ko jodana achhi baat hai. Kya kewal Rahul gandhi aur Britain ke mantri hi gaon me jaa sakate hain?
Vikas ho raha hai. Kahin kum kahin jyada lekin har taraph thoda bahut jaroor hai. Logo ke man se bhay nikalate jaa raha hai. Bihar ka kuchh hissa to invincible ho gaya tha.
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