Wednesday, February 25, 2009

विश्व को ललकारने की धृष्टता - मित्र की राय सर आंखों पर

1 comment:

Anonymous said...

आप निश्छल और निर्दोष अकादमिक प्रवृति को धृष्टता न कहें. मैंने जो कुछ लिखा है वह शुद्ध द्वेष का प्रतिफल है ... संजीव रंजन, मुजफ्फरपुर